देहरादून। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र अब सौर ऊर्जा से रोशन होंगे। इन क्षेत्रों में 75 विकासकर्ताओं को 54.9 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं आवंटित की गईं। इन परियोजनाओं से विकासकर्ता न्यूनतम तीन रुपये और अधिकतम 4.19 रुपये की दर से बिजली उत्पादित करेंगे। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने पर्वतीय क्षेत्रों में सोलर पावर प्लांट से उत्पादित बिजली की निकासी को ग्रिड लाइनों का नेटवर्क बनाने और ट्रांसफार्मर की व्यवस्था पर होने वाले खर्च की रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश ऊर्जा निगम को दिए हैं। इससे भविष्य में पर्वतीय क्षेत्रों में और सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने के संबंध में निर्णय लिया जा सकेगा। 

सचिवालय में शुक्रवार को उत्तराखंड सौर ऊर्जा नीति के तहत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में परियोजना अनुमोदन समिति की बैठक हुई। बैठक में मुख्य सचिव ने पहले आवंटित 148.85 मेगावाट क्षमता की सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना की प्रगति की समीक्षा भी की। यह निर्देश दिए गए कि सभी परियोजनाओं को समयबद्ध रुप से स्थापित किया जाए। 54.9 मेगावाट क्षमता की इन आवंटित परियोजनाओं की स्थापना पर लगभग 220 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश होगा। इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 300 व्यक्तियों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।

पिरूल योजना के 17 प्रस्ताव मंजूर 

मुख्य सचिव की अध्यक्षता में परियोजना अनुमोदन समिति की अन्य बैठक में पिरुल से विद्युत उत्पादन एवं बिक्रेट बनाने के लिए द्वितीय चरण में प्राप्त प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। उरेडा ने इस नीति में 10 किलोवाट से 250 किलोवाट क्षमता की विद्युत उत्पादन इकाइयों के साथ 2000 मीट्रिक टन तक बायोमास ब्रिकेटिंग व बायो आयल इकाइयों की स्थापना कराने हुए दूसरे चरण में रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल के तहत प्रस्ताव आमंत्रित किए गए थे। इनमें कुल 17 प्रस्ताव विभिन्न फर्म ने जमा कराए। 385 किलोवाट क्षमता के 16 प्रस्ताव पिरूल से विद्युत उत्पादन के लिए व 1200 मीटिन ब्रिकेट बनाने का एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ। 

उरेडा मुख्य परियोजना अधिकारी अरुण कुमार त्यागी ने बताया कि राज्य में प्रतिवर्ष करीब छह लाख मीट्रिक टन पिरुल यानी चीड़ की पत्तियां उपलब्ध होती हैं। बैठक में ऊर्जा सचिव राधिका झा, वित्त सचिव सौजन्या, अपर सचिव ऊर्जा आलोक शेखर तिवारी मौजूद थे।

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