नई दिल्ली। युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, विरले कर्मयोगी, दरिद्र नारायण मानव सेवक, तूफानी हिन्दू साधु, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत व प्रेरणापुंज स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (आधुनिक नाम कोलकाता) में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। उस समय यूरोपीय देशों में भारतीयों व हिन्दू धर्म के लोगों को हीन भावना से देखा जा रहा था व समस्त समाज दिशाहीन हो चुका था। भारतीयों पर अंग्रेजियत हावी हो रही थी। ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद ने जन्म लेकर न केवल हिन्दू धर्म को अपना गौरव लौटाया अपितु विश्व फलक पर भारतीय संस्कृति व सभ्यता का परचम भी लहराया। नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनने का सफर उनके हृदय में उठते सृष्टि व ईश्वर को लेकर सवाल व अपार जिज्ञासाओं का साझा परिणाम था। 

समय के साथ ही नरेन्द्र के मन में अंकुरित होता धर्म और समाज परिवर्तन का बीज वटवृक्ष में तब्दील होने लगा। स्वामी विवेकानंद ने देश के कोने-कोने में जाकर गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के आशीर्वाद से धर्म, वेदांत और संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। इसी बीच स्वामी विवेकानंद का राजस्थान भी आना हुआ। यहीं झुंझुनूं जिले के खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने उन्हें 'विवेकानंद' नाम दिया और सिर पर स्वाभिमान की केसरिया पगड़ी पहनाकर व जहाज का टिकट करवा कर अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद में हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति का शंखनाद करने के लिए भेजा। स्वामी विवेकानंद को विश्व धर्म परिषद में पर्याप्त समय नहीं दिया गया। किसी प्रोफेसर की पहचान से अल्प समय के लिए स्वामी विवेकानंद को शून्य पर बोलने के लिए कहा गया। अपने भाषण के प्रारंभ में जब स्वामी विवेकानंद ने 'अमेरिकी भाइयों और बहनों' कहा तो सभा के लोगों के द्वारा करतल ध्वनि से पूरा सदन गूंज उठा। उनका भाषण सुनकर विद्वान चकित हो गए। इस सब से अभिभूत होकर अमेरिकी मीडिया ने उन्हें 'साइक्लॉनिक हिन्दू' का नाम दिया। 

स्वामी विवेकानंद को एक बार एक विदेशी महिला ने कहा- 'मैं आपसे शादी करना चाहती हूं।' विवेकानंद ने पूछा- 'क्यों देवी? पर मैं तो ब्रह्मचारी हूं।' महिला ने जवाब दिया- 'क्योंकि मुझे आपके जैसा ही एक पुत्र चाहिए, जो पूरी दुनिया में मेरा नाम रोशन करे और वो केवल आपसे शादी करके ही मिल सकता है मुझे।' विवेकानंद ने कहा- 'इसका और एक उपाय है।' विदेशी महिला ने पूछा- 'क्या?' विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए कहा- 'आप मुझे ही अपना पुत्र मान लीजिए और आप मेरी मां बन जाइए, ऐसे में आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा और मुझे अपना ब्रह्मचर्य भी नहीं तोड़ना पड़ेगा।' महिला हतप्रभ होकर विवेकानंद को ताकने लगी। जब विवेकानंद भारत लौटे तो मिट्टी में लोटने लगे। लोगों ने उन्हें देखकर मान लिया कि स्वामी जी तो पागल हो गए हैं। पर इसके पीछे भी महान सोच की माटी के प्रति गहरी कृतज्ञता का भाव छिपा था। 4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानंद पंचतत्व में विलीन हो गए। पर अपने पीछे वह असंख्य युवाओं के सीने में आग जला गए जो इंकलाब एवं कर्मण्यता को निरंतर प्रोत्साहित करती रहेगी। युवाओं को गीता के श्लोक के बदले मैदान में जाकर फुटबॉल खेलने की नसीहत देने वाले स्वामी विवेकानंद सर्वकालिक प्रासंगिक रहेंगे। 

स्वामी विवेकानंद जिनके जन्मदिवस को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है और पूरे विश्व में जिन्होंने भारतीय संस्कृति, जीवन दर्शन और गौरव की दुदुंभि बजाई और सारा यूरोप जिनके चरणों में लोट-पोट गया। आज भारत की युवा ऊर्जा अंगड़ाई ले रही है और भारत विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश माना जा रहा है। इसी युवा शक्ति में भारत की ऊर्जा अंतर्निहित है। इसीलिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इंडिया 2020 नामक अपनी कृति में भारत के एक महान राष्ट्र बनने में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित की है। पर महत्व इस बात का है कि कोई भी राष्ट्र अपनी युवा पूंजी का भविष्य के लिए निवेश किस रूप में करता है। हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व देश के युवा बेरोजगारों की भीड़ को एक बोझ मानकर उसे भारत की कमजोरी के रूप में निरूपित करता है या उसे एक कुशल मानव संसाधन के रूप में विकसित करके एक स्वाभिमानी, सुखी, समृद्ध और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में भागीदार बनाता है। यह हमारे राजनीतिक नेतृत्व की राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकारों की समझ पर निर्भर करता है। साथ ही युवा पीढ़ी अपनी ऊर्जा के सपनों को किस तरह सकारात्मक रूप में ढालती है, यह भी बेहद महत्वपूर्ण है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत दुनिया में सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। यहां लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं, जबकि देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहेगी। अपनी बड़ी युवा जनसंख्या के साथ भारत अर्थव्यवस्था नई ऊंचाई पर जा सकता है। लेकिन इस ओर भी ध्यान देना होगा कि आज देश की बड़ी जनसंख्या बेरोजगारी से जूझ रही है। केंद्र सरकार के रोजगार सृजन पर जोर के बावजूद देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, देश की बेरोजगारी दर 2015-16 में पांच प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पांच साल का उच्च स्तर है। महिलाओं के मामले में बेरोजगारी दर उल्लेखनीय रूप से 8.7 प्रतिशत के उच्च स्तर पर जबकि पुरूषों के संदर्भ में यह 4.3 प्रतिशत है। पढ़े-लिखे युवा भी बेरोजगारी से अछूते नहीं रहे हैं। इनमें 25 फीसदी 20 से 24 वर्ष के हैं, तो 17 फीसदी 25 से 29 वर्ष के हैं।

हमें इस युवा शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का संतुलित उपयोग करना होगा। कहते हैं कि युवा वायु के समान होता है। जब वायु पुरवाई के रूप में धीरे-धीरे चलती है तो सबको अच्छी लगती है। सबको बर्बाद कर देने वाली आंधी किसी को अच्छी नहीं लगती है। हमें इस पुरवाई का उपयोग विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में करना होगा। यदि हम इस युवा शक्ति का सकारात्मक उपयोग करेंगे तो विश्वगुरु ही नहीं अपितु विश्व का निर्माण करने वाले विश्वकर्मा के रूप में भी जाने जाएंगे। किसी शायर ने कहा है कि, 'युवाओं के कधों पर, युग की कहानी चलती है। इतिहास उधर मुड़ जाता है, जिस ओर जवानी चलती है।' हमें इन भावों को साकार करते हुए अंधेरे को कोसने की बजाय 'अप्प दीपो भवः' की अवधारणा के आधार पर दीपक जला देने की परंपरा का शुभारंभ करना होगा। युवावस्था एक चुनौती है। वह महासागर की उताल तरंगों को फांदकर अपने उदात्त लक्ष्य का वरण कर सकती है, तो नकारात्मक ऊर्जा से संचालित व दिशाहीन होने पर अधःपतन को भी प्राप्त हो सकती है। उसमें ऊर्जा का अनंत स्त्रोत है, इसलिए उसका संयमन व उचित दिशा में संस्कार युक्त प्रवाह बहुत आवश्यक है। 
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