जिनेवा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दुनियाभर में कोरोना वायरस महामारी के हालात पर चर्चा के लिए आपातकालीन समिति ने गुरुवार को बैठक बुलाई है. डब्ल्यूएचओ ने इससे पहले इस तरह की बैठक तीन महीने पहले की थी, जब कोविड-19 को अंतरराष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था.

डब्ल्यूएचओ चीफ टेड्रोस एडहोम घेब्रेयसस इस बात से आगबबूला हो गए हैं कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की स्वास्थ्य एजेंसी ने कोरोना प्रकोप को कैसे संभाला है, जिसकी शुरुआत दिसंबर में चीन से हुई और अब दुनियाभर में फैल गया है. अब ये जानलेवा वायरस तीन मिलियन से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है और लगभग 2.25 लाख लोगों की जान ले ली.

टेड्रोस सोमवार को कहा था कि डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 की गंभीरता को समझते हुए 30 जनवरी को स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया था, तब कोई मौत नहीं हुई थी और चीन के बाहर सिर्फ 82 मामले दर्ज किए गए थे. उन्होंने कहा, "दुनिया को डब्ल्यूएचओ को ध्यान से सुनना चाहिए था."

अमेरिका और WHO
बता दें, डब्ल्यूएचओ को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस महीने की शुरुआत में अमेरिका से एजेंसी को मिलने वाली फंडिंग को यह कहते हुए रोक दिया कि डब्ल्यूएचओ समय पर और पारदर्शी तरीके से महामारी से जुड़ी जानकारी साझा करने में विफल रहा है.
अब अमेरिका में विदेश मामलों पर यूएस हाउस कमेटी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की फंडिंग को रोकने वाले ट्रंप प्रशासन के निर्णय की जांच शुरू कर दी है. कमेटी के अध्यक्ष एलियट एंगेल ने इस बात की जानकारी दी. एंगेल ने कहा कि भले ही डब्ल्यूएचओ अपूर्ण रहा हो, लेकिन संगठन ने दुनिया भर की सरकारों के बीच समन्वय की एक आवश्यक भूमिका निभाई और कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए इसे जल्दी से हेल्थ इमरजेंसी और महामारी घोषित किया.
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