देहरादून I प्रदेश में प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण अनिवार्य किया जा रहा है। प्राकृतिक जल स्रोतों की मैपिंग होगी और इनके संरक्षण के लिए अनिवार्य रूप से उपाय किए जाएंगे। यह प्रावधान जल नीति में किए जाएंगे। जिसका मसौदा तैयार कर लिया गया है। सचिव सिंचाई भूपेंद्र कौर औलख के मुताबिक यह मसौदा मंत्रिमंडल की अगली बैठक में रखा जाएगा।
भूजल के अनावश्यक दोहन को रोकने के लिए भी नीति में प्रावधान किए गए हैं। भूजल के हिसाब से अतिसंवेदनशील जिलों पर विशेष फोकस रखा गया है। चाल खाल, नदियों के पुर्नोद्धार, जल संचय की नई संरचनाओं पर खास ध्यान दिया जाएगा। वहीं, नई जल नीति में रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर खासा जोर है। सरकार का मानना है कि प्रदेश की जल मांग की पूर्ति करने में बारिश सक्षम है। इस पानी का उपयोग न करना अक्षम्य है। नीति में इस काम को न करने पर दंडात्मक कदम उठाने का भी प्रावधान है। वहीं, प्राकृतिक जल स्रोत, भूजल, बारिश, नदियां आदि की मैपिंग के लिए नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट, आईटीआई सहित अन्य संस्थाओं का सहयोग लिया जाएगा।

लघु जल विद्युत परियोजनाओं की सिफारिश
नीति में यथासंभव लघु जल विद्युत परियोजनाओं के विकास का आग्रह किया गया है। करीब 2700 मेगावट की जल विद्युत क्षमता को देखते हुए राज्य में बड़ी योजनाओं पर अधिक फोकस रहा। इससे पर्यावरणीय नुकसान के साथ ही प्रदेश को अन्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। पर्यावरणविद् तक इसी नुकसान को देखते हुए छोटी परियोजनाओं का सुझाव देते रहे हैं।
 

जल नीति की प्रमुख बातें

पानी की गुणवत्ता पर फोकस , वाटर ऑडिट होगा, जुर्माने का भी प्रावधान
नीति में पानी की गुणवत्ता को प्रमुखता दी गई है। उत्तराखंड वाटर रेग्युलेटरी कमीशन को नए सिरे से गठित करने और इस संस्था को प्रभावी बनाने की सिफारिश की गई है। वाटर आडिट का प्रावधान किया गया है। नीति में पानी के बेजा इस्तेमाल को रोकने के लिए भारी जुर्माने जैसी व्यवस्था का भी सुझाव है। उद्योगों के लिए पानी का शोधन कर ही उसे नदी नालोें में छोड़ने का अनिवार्य प्रावधान किया गया है। 

यूजर चार्ज, जल शिक्षा पर जोर
जल नीति में जल उपयोग को यूजर चार्ज के दायरे में लाने का सुझाव है। यानी जितने और जिस तरह से पानी का उपयोग, उतना ही शुल्क भी होगा। यह शुल्क कितना होगा और किस तरह का होगा, इसकी नियमावली तैयार होगी। जल के महत्व और आधुनिक तकनीकों की जानकारी पाठ्यक्रमों में शामिल की जाए

कृषि, सिंचाई, बागवानी : कम खर्च, ज्यादा उपयोग
कृषि और सिंचाई विभाग को कम पानी खर्च में अधिक से अधिक फायदा लेने को कहा गया है। सिंचाई को नहरों की मरम्मत, कृषि को ड्रिप स्प्रिंकल जैसी तकनीकों का प्रयोग करने को गया है।

परंपरा का संरक्षण
घराटों को पुनर्जीवित करना अनिवार्य, इनको उच्च तकनीक से जोड़ना, जल संरक्षण की परंपराओं का डोक्यूमेंटेशन
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