देहरादून I 'नमस्ते मैम, मैं हलीमा राजकीय बालिका इंटर कालेज कारगी में कक्षा नौं की छात्रा अब आपकी मदद से दोबारा पढ़ पा रही हूं। आपका दिल से धन्यवाद।' हलीमा ने यह पत्र सचिव सिंचाई भूपेंद्र कौर औलख को लिखा है। हलीमा की मां चाहती थी कि बेटी पढ़े, लेकिन पिता इसके लिए सहमत नहीं थे। लिहाजा हलीमा को स्कूल छोड़ना पड़ा।
स्कूल के निरीक्षण के दौरान सिंचाई सचिव को यह जानकारी मिली। उनकी ओर से कोशिश हुई तो उनको एक प्यारा सा खत हलीमा की ओर से मिला। इससे प्रेरित औलख अब कहती है कि मेरी तरफ से सबसे अपील कीजिए कि बेटियों को घर न बैठाएं, उन्हें पढ़ाएं। 

छात्राओं में ड्राप आउट रेट अधिक

हलीमा का यह खत और सिंचाई सचिव की यह अपील अकारण नहीं है। हाल ही में सामने आई मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक 6-17 आयु वर्ग के बच्चों के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि प्रदेश में छात्रों के मुकाबले छात्राओं में ड्राप आउट रेट अधिक है। हलीमा का खत प्रदेश की इसी विडंबना की ओर इशारा कर रहा है।

कारगी की इस बिटिया ने खुद को इस विडंबना का शिकार होने से बचा लिया। खुद औलख के मुताबिक मुख्यमंत्री ने आदेश दिया था कि अधिकारी जिलों का भ्रमण भी करें। इसी आदेश के तहत उन्होंने अपने बच्चों को साथ में लेकर कारगी के सरकारी स्कूल का निरीक्षण किया। निरीक्षण में सामने आया कि 9वीं की एक छात्रा हलीमा स्कूल नहीं आ रही है। पता किया तो सामने आया कि पिता बिटिया के स्कूल जाने से सहमत नहीं है लेकिन मां चाहती हैं कि बिटिया पढ़े। औलख ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बात की। अधिकारियों को हलीमा के घर भेजा तो पिता बिटिया को स्कूल भेजने पर सहमत हो गए।

ड्राप आउट में छात्राओं की संख्या करीब 80 प्रतिशत 

मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक 6-17 आयु वर्ग में कुल छात्रों में 5.25 स्कूल से बाहर पाए गए। इनमेें से 78.91 छात्र और 79.98 छात्राओें ने दाखिला लेने के बाद स्कूल छोड़ दिया। 2.39 प्रतिशत छात्राओं ने दाखिला लिया लेकिन स्कूल की ओर रुख नहीं किया।

13.67 प्रतिशत छात्राएं दाखिला लेती ही नहीं। प्रदेश में एक से लेकर पांचवीं तक करीब 99 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में दाखिला लेते हैं। छठवीं से लेकर आठवीं तक के बीच यह प्रतिशत गिरकर 87 प्रतिशत हो जाता है। 9वीं- 10वीं में यह 85 प्रतिशत रह जाता है और इसके बाद इंटर में यह प्रतिशत केवल 75 रह जाता है।
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