नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दिल्ली पुलिस, जेएनयू के कई छात्रों और JNUSU नेताओं के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की। याचिका में उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है कि जिन्होंने हाई कोर्ट के आदेश का कथित उल्लंघन करते हुए प्रशासनिक भवन के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन किया।

जेएनयू प्रशासन ने दावा किया कि छात्रों ने प्रशासनिक ब्लॉक के 100 मीटर के दायरे में विरोध प्रदर्शन करके 9 अगस्त, 2017 के उच्च न्यायालय के आदेश का घोर उल्लंघन किया और उसके दिन-प्रतिदिन के कामकाज को प्रभावित किया है। 28 अक्टूबर से उसका कामकाज बाधित है।
इसमें कहा गया है कि पुलिस ने भी विश्वविद्यालय में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने और प्रशासनिक ब्लॉक के चारों ओर नाकाबंदी को हटाने के लिए कार्रवाई करने से इनकार करके अदालत के आदेश का उल्लंघन किया है। 
केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा के माध्यम से दायर याचिका में छात्रों और पुलिस के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने और अदालत के आदेश की कथित रूप से अवज्ञा के लिए न्यायालयों के अधिनियम के अनुसार दंडित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।

जेएनयू के छात्र तीन हफ्ते से बढ़ी हुई हॉस्टल फीस के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को प्रदर्शनकारी छात्र संसद मार्च के लिए निकले। इस दौरान रास्ते में पुलिस द्वारा उन्हें रोका गया। करीब 100 छात्रों को हिरासत में लिया गया और लाठीचार्ज में कुछ छात्रों को चोट भी लगी।

इस मामले में दिल्ली पुलिस ने भी 2 FIR दर्ज की हैं। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सरकारी कार्य के निर्वहन में बाधा डालने, सरकारी कर्मचारी पर हमला कर या उस पर बल का इस्तेमाल कर उसे उसकी ड्यूटी निभाने से रोकने के आरोप लगाए हैं, और इन्हीं से संबंधी धाराएं लगाई गई हैं।

पुलिस के अनुसार आठ घंटे तक चले इस विरोध प्रदर्शन के दौरान लगभग 30 पुलिसकर्मी और 15 छात्र घायल हो गए।

विरोध प्रदर्शन शुरू होने से पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तीन सदस्यों की एक समिति गठित की जो विश्वविद्यालय में सामान्य कामकाज बहाल करने के तरीकों की सिफारिश करेगी।
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