पौड़ी I उत्तराखंड के पौड़ी में कोट ब्लॉक के पलोटा गांव में हूं। घुमावदार रास्तों से होते हुए लंबी दूरी तय कर यहां पहुंचे हैं। सड़क से नीचे पगडंडियों से उतरते हुए गांव में कदम रखते हैं। दूर-दूर तक नीरवता छाई है। परंपराएं सिसकती हैं, चौपालें तरसती हैं। न दीवाली के दीये टिमटिमाते हैं, न होली के रंग मुस्कुराते हैं। अधिकतर घरौंदों पर ताले लटके हैं। कुछ अपनों की राह देखते-देखते खंडहर भी हो गए।
पलायन ने पलोटा को सूना कर दिया है। नई पीढ़ी रोजगार और सुविधाओं की कमी के चलते यहां से चली गई। रह गए बुजुर्ग। 76 घरों में से करीब 25 में बुजुर्ग रहते हैं। बाकी घर बंद पड़े हैं। यहां की लोक संस्कृति, खुशहाली, मेलजोल सब लोगों के साथ चले गए। खेत भी बंजर पड़े हैं।
लाचार बुजुर्ग मूलभूत सुविधाओं के लिए भी मोहताज हैं। न पानी है और न चिकित्सा। बीमार हो जाते हैं तो इलाज के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। 79 वर्षीय चंद्र सिंह और उनकी पत्नी पारू देवी अपने पठाल के घर में दिन काट रहे हैं। कुछ महीने पहले ही सरकारी योजना की मदद से घर में बिजली आई है।
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