नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून का देश के अलग अलग हिस्सों में विरोध हो रहा है। विरोधी दल जहां एक तरफ कह रहे हैं कि इस कानून से संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ किया गया है, वहीं गृह मंत्रालय द्वार नोटिफिकेशन जारी होने के बाद यह कानून पूरे देश में लागू हो गया है। सरकार का तर्क है कि बिना किसी ठोस आधार के विरोधी दल आम लोगों को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हमने उस वादे को अमलीजामा पहनाया जो दशकों पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना झेलने वाले गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ किया गया था।
केंद्र सरकार ने 1955 नागरिकता संबंधी कानून में बदलाव करने के लिए नागरिकता संशोधन बिल लेकर आई थी। लोकसभा में बिना किसी परेशानी के यह बिल पारित हो गया। असली चुनौती राज्यसभा में भी थी। लेकिन सरकार बेहतर फ्लोर मैनेजमेंट से इस बिल को पारित कराने में कामयाब रही। दोनों सदनों से इस बिल के पारित होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुहर लगा दी और यह बिल कानून की शक्ल में आ गया।
इस कानून के जरिए अब पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने में आसानी होगी। अभी तक उन्हें अवैध शरणार्थी माना जाता था। लेकिन इस कानून के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन हो रहा है। विरोधी दलों का कहना है कि सरकार इस कानून के जरिए समाज की एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है। सरकार अगर अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात करती है तो मुसलमानों को क्यों छोड़ दिया गया।
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