हिमालयी राज्यों में पर्यावरण संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन यहां विकास भी उतना ही आवश्यक है। पर्यावरण को सुरक्षित रख विकास योजनाओं को धरातल पर उतारना राज्यों के सामने बड़ी चुनौती है। हमें ऐसे इको फ्रेंडली डेवलपमेंट मॉडल की जरूरत है, जिससे हिमालय की जैव विविधता को नुकसान पहुंचाए बिना हम प्रदेश की आर्थिकी को मजबूत कर सकें। यह इतना मुश्किल भी नहीं है। जैव विविधता को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त नियम कानून हैं, लेकिन सरकारों को अपने स्तर से पर्याप्त संख्या में पौधरोपण, जलाशयों का संरक्षण, जल संचय के साथ पारंपरिक जैविक खेती के साथ हॉर्टिकल्चर को विकसित करना होगा। इसी के साथ विकास योजनाओं को संचालित करना पड़ेगा।
पहाड़ पर जब तक इंडस्ट्री नहीं आएगी विकास कैसे होगा?
यह धारणा पूरी तरह से गलत है कि विकास बड़े उद्योगों के लगने से होता है। मैं इस बात का बिल्कुल भी पक्षधर नहीं हूं कि मैगा हेवी इंडस्ट्री पर्वतीय क्षेत्रों में लगे, लेकिन कई ऐसे इंडस्ट्रियल सेक्टर हैं, जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना आर्थिकी को मजबूत किया जा सकता है। एग्रो बेस्ड इंडस्ट्री पहाड़ के लिए वरदान साबित हो सकती है। बागवानी में अभी बहुत कुछ किया जा सकता है। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। पर्यटन, सूचना प्रौद्योगिकी, वेलनेस, एजूकेशन, इलेक्ट्रोनिक्स आदि सेक्टर हैं, जिन्हें विकसित करने की जरूरत है। इससे हम पहाड़ में विकास को नई दिशा दे सकते हैं।
एक तरफा न सोचें पर्यावरणविद, सकारात्मक पक्ष भी देखें
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मानते हैं कि पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए, लेकिन उनकी चिंता यह है कि इससे विकास योजनाओं पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव से कैसे निपटा जाए? पर्यावरणविदों की पर्यावरण संरक्षण से संबंधित दलीलों को मुख्यमंत्री एकतरफा सोच मानते हैं। उनका कहना है कि सिक्के के दूसरे पहलु, विकास योजनाओं, को भी देखना जरूरी है। बढ़ते वन क्षेत्र के एवज में उनकी ग्रीन बोनस की मजबूती से पैरोकारी है। पर्यावरण संरक्षण के लिए वे एक बड़ी पहल करने जा रहे हैं। हरेला पर्व के दिन एक साथ करोड़ों पौधे रोपित करना अगला लक्ष्य है। हिमालय दिवस पर मुख्यमंत्री जनता से वादा चाहते हैं कि वे पॉलिथीन बैग का त्याग करें।
क्या वजह है कि सरकारी विकास मॉडल से पर्यावरणविद सहमत नहीं होते ?
पर्यावरणविद एक तरफा सोचते हैं। सरकारें भी जानती हैं कि पर्यावरण संरक्षण भविष्य की जरूरत है, लेकिन उसके साथ विकास भी जरूरी है। पर्यावरण की कीमत पर विकास का कोई पक्षधर नहीं है, लेकिन तालमेल बैठाकर एक विकास मॉडल बन सकता है। इसी तरह से हम पहाड़ों में लोगों को सुविधाएं और साधन दे सकते हैं। मैं पर्यावरणविदों से पूछता हूं कि टिहरी बांध नहीं होता तो वर्ष 2013 में आई आपदा से क्या होता? हमें सकारात्मक पक्ष भी सोचना चाहिए। बांध ने नुकसान कोकाफी हद तक कम कर दिया। एक तरफा सोचने की जरूरत नहीं है, हमें सर्वांगीण सोचना चाहिए। पर्यावरण एक बहुत महत्वपूर्ण पक्ष है, लेकिन पर्यावरण का संरक्षण करते हुए हमें मौजूदा परिस्थितियों से ही विकास का रास्ता निकालना है।
पर्यटन प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है, लेकिन पर्यावरणविद उसे नुकसान का कारण भी मानते हैं?
हिमालय राज्यों में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। सुनियोजित तरीके से काम करने पर पर्यटन में कई सेक्टर्स विकसित हो सकते हैं। उत्तराखंड सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है। एडवेंचर टूरिज्म में काफी संभावनाएं हैं। इको पार्क हम लोग विकसित कर रहे हैं। इसमें बस एक चीज बेहद महत्वपूर्ण है कि पर्यटन क्षेत्रों में कई तरह का कचरा भी पैदा होता है, जिसके लिए स्वच्छता का ठोस प्लान होना चाहिए। पर्वतारोहण के क्षेत्र में भी कई संभावनाएं हैं, जिन पर काम हो रहा है। स्पोर्ट्स टूरिज्म भी हिमालय राज्यों में विकसित हो सकता है। मिडल हिमालय में क्रिकेट जैसे खेल के लिए प्रशिक्षण कैंप बन सकते हैं। पौड़ी में हम हाई एल्टीट्यूड स्पोर्टस अकादमी बना रहे हैं। क्रिकेट और अन्य खेलों के स्टेडियम और ट्रेनिंग सेंटर बन सकते हैं। विदेशों में ट्रेनिंग के लिए यहां खिलाड़ी प्रेक्टिस करने आ सकते हैं। उन्हें कम खर्चे में अधिक सुविधाएं दी जा सकती हैं।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर आपने कौन सी पहल की है?
हर जिले में हर वर्ष एक एक नदी पर काम करने के निर्देश जिलाधिकारियों को दिए हैं। पौधरोपण और चैक डैम बनना चाहिए। इसकी रिपोर्ट हर जिले को देनी होगा कि पर्यावरण संरक्षण पर कितना काम हुआ। इससे अधिकारियों में प्रतिस्पर्धा आएगी। दूसरा, पौधरोपण हमारे फोकस में है। भविष्य में हरेला पर्व को व्यापक तरीके से मनाने की योजना बना रहे हैं। एक दिन पूरे राज्य का हर नागरिक पौधरोपण में जुटेगा। यह संकल्प लाने पर मैं अधिकारियों के साथ बैठक करूंगा। समाज के हर वर्ग को हरेला से जोड़ा जाएगा।
पर्यावरण संरक्षण के एवज में ग्रीन बोनस की मांग कितनी जायज है?
पर्यावरणविदों ने हमारी ग्रीन बोनस की मांग को जायज माना है। उन्होंने केंद्र से की अपनी सिफारिशों में इसे शामिल किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदेश में हरियाली क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। जंगली जानवरों की संख्या भी बढ़ रही है। इससे हमारी विकास योजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। विकास परियोजनाओं को बेहद मुश्किल से पर्यावरणीय अनुमति मिल पाती है, अनावश्यक विलंब हो रहा है। ग्रीन बोनस की हमारी मांग को केंद्र के स्तर से भी सही माना जा रहा है। जो भी राज्य ग्रीन कवर बढ़ाए, उसे ग्रीन बोनस मिलना चाहिए।
हिमालय दिवस पर क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं केवल यह चाहता हूं कि हिमालय दिवस पर हम एक चीज का त्याग करें। प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दें।
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