मुम्बई, दिलीप साहब हिंदी सिनेमा की एक हस्ती रहे हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनके जन्म का नाम मुहम्मद युसुफ़ खान है। वे पेशावर (अब पाकिस्तान) में 11 दिसंबर 1922 में पैदा हुए। बाद में उनके पिता मुंबई आ बसे थे, जहाँ उन्होने हिन्दी फ़िल्मों में काम करना शुरू किया। उन्होने अपना नाम बदल कर दिलीप कुमार कर दिया ताकि उन्हे हिन्दी फ़िल्मो में ज्यादा पहचान और सफलता मिले।
ज्वारभाटा फ़िल्म से अपना कैरियर शुरू करने वाले दिलीप साहब अभिनय की दुनिया के बेताज बादशाह रहे हैं जिनकी नकल कर कितने ही हीरो ने अभिनय सीखा।जीवन में मिलने वाले दुःखों को इन्होंने अपने हावभाव से इतने जीवांत रूप में पर्दे पर उतारा की लोग इन्हें 'ट्रेजिडी किंग' कहने लगे। बाद में कॉमिडी भूमिकाओं में भी इन्होंने झंडे गाड़े। नई पीढ़ी को छोड़ कर भारत में शायद ही कोई होगा जिस ने इनकी पिक्चर न देखी हो। मुगले आज़म, नया दौर, राम और श्याम, दिल दिया दर्द लिया, संघर्ष, गंगा जमुना, क्रांति, सौदागर, कर्मा जैसी अगणित सदाबहार फिल्में इनके नाम दर्ज हैं। 

दिलीप साहब ने अभिनेत्री सायरा बानो से 1966 में विवाह किया।
1980 में उन्हें सम्मानित करने के लिए मुंबई का शेरिफ घोषित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 1995 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। 1998 में उन्हे पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ भी प्रदान किया गया।

वर्ष 2000 से 6 साल के लिए वे राज्य सभा के सदस्य भी रहे।
बाला साहब ठाकरे और उनकी दोस्ती भी काफी प्रसिद्ध रही। कहा जाता है ठाकरे साहब उन्हें अक्सर अपने साथ बीयर पीने के लिए बुलाते थे।
उम्र के इस मोड़ पर उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता और पाली हिल(मुम्बई) के बंगले में ही उनका समय गुजरता है।
हम सब की ओर से इस महान कलाकार को अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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